Wednesday, December 17, 2008

Poets of India....Harivansha Rai Bacchan

Long before the surname became a metaphor for the bollywood actor Amitabh Bacchan, it was very well known in the literary circle of India. It was Harivansha Rai Bacchan.
From my childhood onwards i have had a great amount of liking for poems. I remember sitting in that kerosene lamp and reading the poems in our textbooks loud with rhythm and a peculiar back and forth motion of the torso. You can still find school kids doing their lessons in the similar way back in the Indian villages. Anyway describing those experiences will take up another blog. I would just paste some of the poems that i really like and admire by Mr. Bacchan.

कोशिश करने वालों की
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

पथ की पहचान
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले
पुस्तकों में है नहींछापी गई इसकी कहानीहाल इसका ग्यात होताहै ना औरों की ज़बानी
अनगिनत राही गयेइस राह से उनका पता क्यापर गये कुछ लोग इस परछोड पैरों की निशानी
यह निशानी मूक हो करभी बहुत कुछ बोलती हैखोल इसका अर्थ पंथीपंथ का अनुमान कर ले
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

यह बुरा है या कि अच्छाव्यर्थ दिन इस पर बितानाअब असंभव छोड यह पथदूसरे पर पग बढाना
तू इसे अच्छा समझयात्रा सरल इससे बनेगीसोच मत केवल तुझे हीयह पडा मन में बिठाना
हर सफ़ल पंथी यहीविश्वास ले इस पर बढा हैतू इसी पर आज अपनेचित्त का अवधान कर ले
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

है अनिश्चित किस जगह परसरित, गिरी, गहवर मिलेंगेहै अनिश्चित किस जगह परबाग बन सुंदर मिलेंगे
किस जगह यात्रा खत्महो जाएगी यह भी अनिश्चितहै अनिश्चित कब सुमन कबकंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छूट जाएंगेंमिलेंगे कौन सहसाआ पडे कुछ भी रुकेगातु न ऐसी आन कर ले
कोई पार नदी के गाता
भंग निशा की नीरवता कर इस देहाती गाने का स्वर
ककड़ी के खेतों से उठ कर,
आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता
होंगे भाई बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई,
उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता
आज न जाने क्यों होता मन
सुन कर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता,
सदा इसे यह गाता
कोई पार नदी के गाता
It's beautiful how these poems say so much in so few words. They say 'jahan na pahunche ravi, wahan pahunche kavi' meaning even the places where sun rays cannot reach a poet's mind can.

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